"आओ ज़रा वापस चलें
उन्ही गलियों में
जहाँ से दिन शुरू किया करते थे।
नींद की झुग्गियों से होते हुए
चलो एक नया ख्वाब ढूँढ़ें।
छेड़ती हैं सर सर चलती ये हवाएँ
आओ इन्हें चीर के आगर निकलें
आओ वापस
के चलो एक ख्वाब नया बुनें...."
- Pushkin Channan
उन्ही गलियों में
जहाँ से दिन शुरू किया करते थे।
नींद की झुग्गियों से होते हुए
चलो एक नया ख्वाब ढूँढ़ें।
छेड़ती हैं सर सर चलती ये हवाएँ
आओ इन्हें चीर के आगर निकलें
आओ वापस
के चलो एक ख्वाब नया बुनें...."
- Pushkin Channan
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