दस्तक दिए उसने हमारी चौखट पर,
ये भी न पता लगा पाया के पैगाम आया था मेरी मंज़िल क।
कुछ एक पहर ऐसे ही कोई मेरे दरवाज़े पर आया,
मैंने भी हल्का सा खोल कर देखा।
कम्बख़्त, ये फिर से मेरे कानो का धोखा था।
ये भी न पता लगा पाया के पैगाम आया था मेरी मंज़िल क।
कुछ एक पहर ऐसे ही कोई मेरे दरवाज़े पर आया,
मैंने भी हल्का सा खोल कर देखा।
कम्बख़्त, ये फिर से मेरे कानो का धोखा था।
Comments
Post a Comment