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Showing posts from May, 2017

'बिखरी ज़िन्दगी'

"थक सा गया हूँ ज़िन्दगी से यूँ ही भीड़ के साथ दौड़ता हुआ कब बुझेगी वो आग कब चैन की नींद ले सकूँगा मैं अपनों से जीतने की कोशिश कई खूबसूरत रिश्तों को बिखरते देखा है मैंने अच्छे आछो को टूटते देखा है ये ज़िन्दगी है कोई खेल का मैदान नहीं काबिलियत हो तो मजदूर भी पूजा जाता है पैसे के बल पर मैंने अक्सर नौकरियों को बिकते देखा है थक सा गया हूँ मैं ज़िन्दगी से यूँ ही भीड़ के साथ दौड़ता हुआ"            - Pushkin Channan

'Those Fairy Tales'

"Those fair weather tales Had now turned pale Marking an end To the beautiful fairy tale After effects of which were to prevail Lest we forget, The memories that were built Less we regret, And get convicted of the guilt"         - Pushkin Channan 

"ख्वाब की ओर"

"आओ ज़रा वापस चलें उन्ही गलियों में जहाँ से दिन शुरू किया करते थे। नींद की झुग्गियों से होते हुए चलो एक नया ख्वाब ढूँढ़ें। छेड़ती हैं सर सर चलती ये हवाएँ आओ इन्हें चीर के आगर निकलें आओ वापस के चलो एक ख्वाब नया बुनें...."     - Pushkin Channan 

"The Water of Memories"

"And today again those memories got refreshed Looked as if someone threw stones in that stagnant water The water of memories Filled with those catchy conversations  The Conversations that now haunted for long in the head  Responsible for my sleepless and tiry nights  Which were never to repeat  And made me felt deceived By my own tears anf thoughts  Which never became mine And responsible for me falling in Love With darkness, loneliness, isolation and calmness."             - Pushkin Channan