"थक सा गया हूँ ज़िन्दगी से यूँ ही भीड़ के साथ दौड़ता हुआ कब बुझेगी वो आग कब चैन की नींद ले सकूँगा मैं अपनों से जीतने की कोशिश कई खूबसूरत रिश्तों को बिखरते देखा है मैंने अच्छे आछो को टूटते देखा है ये ज़िन्दगी है कोई खेल का मैदान नहीं काबिलियत हो तो मजदूर भी पूजा जाता है पैसे के बल पर मैंने अक्सर नौकरियों को बिकते देखा है थक सा गया हूँ मैं ज़िन्दगी से यूँ ही भीड़ के साथ दौड़ता हुआ" - Pushkin Channan
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