"उस शोर में भी एक खामोशी सी थी।
जब शाम को दफ्तर से मैं घर लौट रहा था,
एक अजीब सा सन्नाटा था
मानो सभी को एक सांप सूंघ गया था।
उस शोर में एक ख़ामशी सी थी,
जब ट्रेन में चढ़कर मैंने ये एहसास किया के सभी चेहरे नए थे।
उस शोर में आज एक खामोशी देखी
जब सदियों बाद मैं अपने घर की पुरानी गलियों में गया
और महसूस किया के पड़ोसी बदल गए हैं।
उस बच्चे की रोने की रोने की आवाज़ की खामोशी
आज मैंने उस माँ के चेहरे पर देखी।
अपने बच्चों की ख्वाहिशों को पूरा न कर पाने की दर्द की खामोशी
आज मैंने उस पिता की आँखों में महसूस की ।
मैंने आज वो खामोशी भी देखी जब रक्षाबंधन पर बहन
इस ज़िद पर खाना नहीं खाती के भाई को राखी बाँध कर उसके हाथ से पहला निवाला खाऊँगी।
मैंने आज हर शोर में ख़ामोशी देखि और महसूस की......
जब शाम को दफ्तर से मैं घर लौट रहा था,
एक अजीब सा सन्नाटा था
मानो सभी को एक सांप सूंघ गया था।
उस शोर में एक ख़ामशी सी थी,
जब ट्रेन में चढ़कर मैंने ये एहसास किया के सभी चेहरे नए थे।
उस शोर में आज एक खामोशी देखी
जब सदियों बाद मैं अपने घर की पुरानी गलियों में गया
और महसूस किया के पड़ोसी बदल गए हैं।
उस बच्चे की रोने की रोने की आवाज़ की खामोशी
आज मैंने उस माँ के चेहरे पर देखी।
अपने बच्चों की ख्वाहिशों को पूरा न कर पाने की दर्द की खामोशी
आज मैंने उस पिता की आँखों में महसूस की ।
मैंने आज वो खामोशी भी देखी जब रक्षाबंधन पर बहन
इस ज़िद पर खाना नहीं खाती के भाई को राखी बाँध कर उसके हाथ से पहला निवाला खाऊँगी।
मैंने आज हर शोर में ख़ामोशी देखि और महसूस की......
Comments
Post a Comment