"तुम पर तो लाखों मरते होंगे हम तो जीते हैं तुम्हे देख कर
तन्हाई में रुस्वा अक्सर हो जाते हैं दिल बह लिया करते हैं तुम्हे ख़त लिख कर
वो घर के आँगन में फूलों का खिलना
वो अक्सर बगीचों में शामो में अकेले चलना
तुम्हे याद करता है ये दिल
अक्सर तुम्हे ख़त लिखा करता है ये दिल।
वो रातों को ख़ामोशी का कानो को चीरना
वो कभी यूँ ही हर बात पर तुम्हारा नाम गुनगुनाना
तस्वीर तुम्हारी देख कर तुम्हे याद करता है ये दिल
अक्सर तुम्हे ख़त लिखने की गुस्ताखी कर लिया करता है ये दिल।
आगाज़-ऐ-दिन भी कुछ उन शामों की तरह होता है
जब साँझ को तारामंडल में चाँद नहीं होता
बुझा बुझा सा हर दिया लगता है
तेल भी आइना सा लगने लगा है
जब तुम करीब नहीं होती हो तो अक्सर खुद से गुफ़्तगु किया करता है ये दिल
अक्सर तुम्हे ख़त लिखा करता है ये दिल।
बस यूँ ही चलते चलते सफ़र गुज़र जाएगा
कोरे पन्नों को जब मैं अपनी स्याही से भरा करूँगा
ज़िद में तुम तब भी रहना
कोशिशों में मैं भी रहूँगा
ख़त तुम्हे तब भी लिखा करूँगा।
वो ख़त...."
- Pushkin Channan
तन्हाई में रुस्वा अक्सर हो जाते हैं दिल बह लिया करते हैं तुम्हे ख़त लिख कर
वो घर के आँगन में फूलों का खिलना
वो अक्सर बगीचों में शामो में अकेले चलना
तुम्हे याद करता है ये दिल
अक्सर तुम्हे ख़त लिखा करता है ये दिल।
वो रातों को ख़ामोशी का कानो को चीरना
वो कभी यूँ ही हर बात पर तुम्हारा नाम गुनगुनाना
तस्वीर तुम्हारी देख कर तुम्हे याद करता है ये दिल
अक्सर तुम्हे ख़त लिखने की गुस्ताखी कर लिया करता है ये दिल।
आगाज़-ऐ-दिन भी कुछ उन शामों की तरह होता है
जब साँझ को तारामंडल में चाँद नहीं होता
बुझा बुझा सा हर दिया लगता है
तेल भी आइना सा लगने लगा है
जब तुम करीब नहीं होती हो तो अक्सर खुद से गुफ़्तगु किया करता है ये दिल
अक्सर तुम्हे ख़त लिखा करता है ये दिल।
बस यूँ ही चलते चलते सफ़र गुज़र जाएगा
कोरे पन्नों को जब मैं अपनी स्याही से भरा करूँगा
ज़िद में तुम तब भी रहना
कोशिशों में मैं भी रहूँगा
ख़त तुम्हे तब भी लिखा करूँगा।
वो ख़त...."
- Pushkin Channan
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