“यूँ ही अचानक एक दिन ऐसे ही गायब हो गई तुम
बिना एक आखरी बात के
बिना एक आखरी चाय के यूँ ही चली गई तुम।
ज़रा खबर तो पहुंचवा दी होती
शायद आखरी झलक पाने के लिए मुझे ना ना बोलती तुम।
दोस्त थे, दोस्त रहंगे ऐसा वायदा किया था शायद हमने
चलो कोई नहीं!! ये बस बातें हैं। इन बातों का कोई मोल नहीं होता आज के समय में।
कहते हैं जो होता है अच्छा ही होता है।
देखो उस अच्छाई में आज कहाँ पहुँचने की ख्वाहिश रखते हैं हम और तुम।
मुसाफिर की तरह ऐसे ही बीच रस्ते में अकेला छोड़ कर मंज़िल की ओर मय्यसर हो गई तुम।
वैसे तुम्हारे जाने के बाद बहुत इन्तज़ार किया था तुम्हारा
शायद मन बदल जाए और एक बार पीछे मुड़ कर देख लो तुम।
गया हुआ वक़्त और वक़्त के साथ बदले हुए लोग कभी लौट कर नहीं आते।
देखो ज़रा इसी बीच तुम कितनी आगे निकल गई
चलो अच्छा है। कभी ना कभी तो करना ही था।
खैर चलो उम्मीद करता हूँ तुम जहाँ भी रहोगी तरक्की ही करोगी।
और अपनी सेहत का ध्यान भी बखूबी रखोगी तुम।
चलो ख़याल रखना अपना
तुम यूँ छोड़ कर क्या गई, ये ज़िन्दगी ताश के पत्तों की तरह बिखर गई।
बस आजकल उन्ही को समेटने में वक़्त गुज़र जाता है
और कभी कभी ये डर लगता है के कहीं उम्र ना गुज़र जाए??
सुनाया करते थे हमारे बड़े बुज़ुर्ग के लोग ज़िन्दगी बदल दिया करते हैं
मेरी भी ज़िन्दगी बदली है और में लिखने लगा हूँ।
एक आखरी ख्वाहिश - जिस दर्द से तुम गुज़री हो दोबारा उस डगर पर मत चलना।
बहुत ठेस पहुँची है तुम्हे और शायद दोबारा ना झेल सको।”- Pushkin Channan
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