ज़िन्दगी के कुछ उन पहलुओं को समेटने की कोशिश कर रहा था के तभी महसूस हुआ के कहीं उन्हें हासिल करते करते ये पल जीना ना भूल जाऊं।
पहलू वो भी ऐसे जो कभी छुपा कर रखे थे मैंने अपनी तन्हाई में जीने के लिए, क्योंकी ज़िन्दगी का मुझे भरोसा तो रहा नहीं के कब किस का साथ पराया हो जाए।
तारीफ़ में उसकी मैं क्या अल्फ़ाज़ बयाँ करूँ यूँ तो शब्द भी शरमाते हैं उस तक पहुचते हुए.....
पहलू वो भी ऐसे जो कभी छुपा कर रखे थे मैंने अपनी तन्हाई में जीने के लिए, क्योंकी ज़िन्दगी का मुझे भरोसा तो रहा नहीं के कब किस का साथ पराया हो जाए।
तारीफ़ में उसकी मैं क्या अल्फ़ाज़ बयाँ करूँ यूँ तो शब्द भी शरमाते हैं उस तक पहुचते हुए.....
Comments
Post a Comment