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Showing posts from February, 2019

'Favourite Memories'

Hair pulling We shouting You slapping Our fighting Love pouring Amazing feeling. You try killing I manage hiding The chase made Even more exciting. Our colliding While me escaping A nice gaming You complaining I laughing We made the best of siblings. Your absconding Calls not responded I fearing Your well being. In the years time Faces fading A social media thing Picture recognising Oops!! The foremost thing Not regretting The own people's ageing Maybe catching up At some coffee The one fine Evening." - Pushkin Channan

'Being Missed'

Dear Sister, "being missed. yes you are!! and a critic to the distance that put us to war. being each other's shore we sit apart as never before and i miss you to the core may be even more. the face since my childhood  that I've adored the empty mirror of your dressing table now give huge roar. heart cries that i ignore the knocks not being responded to at your room' doors. you left with a big convoy and i let you perish in a fraction of a second to let you enjoy your new life. you said 'goodbye' leaving behind those pair of eyes to 'cry'." - Pushkin Channan

DL 9C Q 9508

"A story of a Santro with DL number 9508. Driven in a city that had the roads not too straight The heart got nurtured through souls that it found great. Those certain coffee dates Always asked me for some wait. Reason, The tyres used to get stuck at the interstate. Always sorry for being late And the recovery done with some favorite coffee shakes. Despite the fights, memories were made The promises to self of not talking again saw being betray'd. Those crazy short drives in the hatchback Always made a minor escape from major scratch. Driven as if the route was a racetrack Never seeing the vehicle coming from the back. The God was the savior, as always We both being saved by the traffic that got us back home late. Under the moon rays Thanking for the beautiful ending of the day. The diaries that got inked The pictures that got clicked Became the memories forever to be kept. A vote of thanks 9508 hatchback  i made the memories sharing the space that other

'अधूरे लम्हे'

"और फिर यूँ ही रात में मेरी ज़िद होती है कुछ देर और लफ्ज़ बयान करने की बात होती है वो दूर थी फिर भी बात मानती है बहन है इसलिए वक़्त गुज़ारती है। आज के रिश्ते कहाँ इतने सच्चे हैं इसलिए हम अपने भाई-बहन के साथ ही अच्छे हैं ज़िन्दगी की दौड़ में अपने अपनों को भूल जाए करते हैं बस कुछ ही तो हैं रिश्ते जो दिल से निभा करते हैं। चली जाती है एक दिन वो अपना घर बसाने को छोड़ जाती है पीछे यादें ताज़ा रखने को कमरे की खाली दीवारें भी अब खामोश रहा करती हैं बहन तेरे कदमो की आहट आज भी मेरे कानों में गूँजा करती है वो अनकहे किस्से आज भी मेरी ज़ुबाँ पर आते हैं तू सामने होती है तो ना जाने कहाँ वो खो जाते हैं। आज कल दिल खामोश रहता है तेरा हाल चाल जानने को बेताब रहता है ना जाने कहाँ छुट गया बचपन अपना तुझसे फिरसे झगड़ने को दिल है।" - Pushkin Channan

'रात की बातें'

"के कंकर को टटोलते हुए मैं पहुँचा अपनी गली चाँद के नीचे भी मुझे यादें इकठ्ठा करना एक साज़िश सी लगी यूँ तो सूरज के उजाले में ही मिल जाते कुछ बिछड़े अपने पर ना जाने क्यों आज वो रात मुझे अपनी सी लगी। वक़्त भी कुछ गुज़ार दिया यूँ ही मैंने अपनी गली में के गलती से कोई अपना आ जाए और ले चले मुझे सफर पे। वो महेंगी मोटर गाड़ी  साथ में अपनो की सवारी मिलती है अब शायद कहानियों में ऐसी यारी। वो बिन मतलब के झगड़े, वो बिन बात की खिंचाई और कभी यूँ ही जब होती थी बड़ों से पिटाई। बस यूँ ही अब कहते हैं के तेरी याद आई कुछ अधूरी कहानियों ने शायद आज उसकी याद दिलाई!!!" - Pushkin Channan

'ऐ ज़िन्दगी'

"कूछ यूँ इस कदर मुझे मिलने से कतराती है ऐ ज़िन्दगी ना जाने क्यों तुझसे ये इतना धबराती है?? कभी कभी मोड़ पर ये यूँ मुझसे टकराती है के बस!! यही है जो मेरा हाल चाल पुछ जाती है रातों को अक्सर हम मिला करते हैं बे-वक्त की मुलाकातें किताब के सफहे पर उतारा करते हैं ये तेरी स्याही है जो वजह से चला करती है बेवजह चलने को हम करिश्मा कहा करते हैं...." - Pushkin Channan

'वो आखरी शाम'

"वो आखरी शाम मेहेंगी मोटर में बैठ रवाना होते वक़्त दुआ सलाम क्या है जो बाकी रह गया था क्या था जो में शायद दे सकता था स्नेह, मोहब्बत, प्यार ना जाने क्या कुछ तो था जो बाकी था कुछ हसरतें थीं जो अधुरी थीं कुछ नगमे थे जो अनसुने थे बना के दिल पत्थर का रुख्सत किया उसको ना जाने कैसा होगा टुकड़ा मेरे दिल का वो कभी जो कह दी जाती थीं गुस्से में बात आज हक़ीक़त बयान करने में भी एक डर लगता है कुछ यूँ ही मुझे अब खुद से भी डर लगता है दबा कर अंदर दिल की बात मैं ज़हर कर लेता हूँ मिल जाए अगर तो दवा समझ कर सुना देता हूँ!!!" - Pushkin Channan

'कुछ रातें ऐसी भी'

"फिर वही रात थी कुछ गुम सी फिर वही सफर था कुछ अकेलेपन का मैं चला कुछ दूर अपने साये से डरा डरा लड़खड़ाते कदमों की आहट मेरे ही कानों में आन गिरी!! मंज़र कुछ यूँ अंधेरे का मेरे सामने था कुंडली लगाए बस कोई अपना वहाँ से गुजरे मैं भी था ऐसी ही आस लगाए!! इस बेगाने शहर में ना जाने क्यों अक्सर लोग मिला करते हैं कुछ अपने ही खो जाते हैं गैरों को अपना करते करते....."