ज़िन्दगी का मैं मज़ा ले रहा था। एक रोज़ ऐसे ही शाम को मैंने अपने दफ्तर की खिड़की से नीचे झाँक कर देखा रोज़ की भाग दौड़ से हटकट मैंने सोचना चाहा जब लीग से हट कर मैंने कुछ देखने की कोशिश की तो ऐसा कुछ दिखा जिसकी कल्पना AC में बैठने वाला नहीं कर सकता। मुझे वो टूटा हुआ घर दिखा जिसमे अँधेरा छाया हुआ था दर-अ -सल वो घर नहीं था, वो तो एक रेत का टीला था जिसे वो आज बहार खड़ा होकर फिरसे बिखरते हुए देख रहा था । उस मौके की तलाश में दिख रहा था के कब वो तूफ़ान रुके और कब फिरसे वो अपना आषियाना सजाये। वो आशियाना जो उसके लिए किसी महल किसी महल से कम नहीं था...... - Pushkin Channan
Driven by the means to communicate.....