आज फिर एक बार तस्वीरों से बात करने को मन हुआ
मुश्किल ये थी के तस्वीरें बोला नहीं करती
और ये भी सुना है जिस दीवार पर वो होती हैं उनके आज कल उनके कान भी होने लगे हैं।
मैं फिर से रोज़ की तरह जाकर बिस्तर पर लेट गया, मगर ये रात पहले वाली रातों से अलग थी,
और उन पलों को जीने की कोशिश करता रहा जब कुछ वक़्त के लिए ही सही, मगर सब सही था।
उन पलों को दोहराने की वो नाक्याम्ब कोशिश करता रहा
क्योंकि लिखे हुए पन्नों पर दोबारा नहीं लिखा जाता।
ये कदम बीएस मंज़िल की ओर पहुँचने ही वाले थे
के मेरी आखों ने जी मुझे धोखा दे दिया।
- Pushkin Channan
Comments
Post a Comment