"कभी उन पुरानी दीवारों को छेद कर देखना
तुम्हें अंदाज़ा हो जाएगा के वक़्त कितना बलवान होता है।
कभी फूटपाथ पर उन बच्चों को देख लेना
इस बात का यकीन हो जाएगा के सोने के लिए मखमल का बिस्तर ज़रूरी नहीं।
कभी अपने घर के बहार झाँक कर देखना
शायद तुम्हें फेंके हुए खाने की कीमत मालूम हो जाए।
कभी घर के पास वाले आश्रम में जा कर देखना
शायद तुम रिश्तों की एहमियत को जान जाओ।
कभी हज़ारों के बीच एक अकेले आदमी को बैठे देखना
शायद तुम समझ जाओ के ज़िन्दगी में दोस्तों का होना भी ज़रूरी होता है।
शायद तुम्हें हर रिश्ते की एहमियत मालूम हो जाए।
शायद तुम ये जान जाओ के कैसा लगता है जब कोई अपना उठ के जाता है।
शायद तुम उसी दर्द को समझ जाओ जब कोई अपना खास अलविदा बोल देता है......"
तुम्हें अंदाज़ा हो जाएगा के वक़्त कितना बलवान होता है।
कभी फूटपाथ पर उन बच्चों को देख लेना
इस बात का यकीन हो जाएगा के सोने के लिए मखमल का बिस्तर ज़रूरी नहीं।
कभी अपने घर के बहार झाँक कर देखना
शायद तुम्हें फेंके हुए खाने की कीमत मालूम हो जाए।
कभी घर के पास वाले आश्रम में जा कर देखना
शायद तुम रिश्तों की एहमियत को जान जाओ।
कभी हज़ारों के बीच एक अकेले आदमी को बैठे देखना
शायद तुम समझ जाओ के ज़िन्दगी में दोस्तों का होना भी ज़रूरी होता है।
शायद तुम्हें हर रिश्ते की एहमियत मालूम हो जाए।
शायद तुम ये जान जाओ के कैसा लगता है जब कोई अपना उठ के जाता है।
शायद तुम उसी दर्द को समझ जाओ जब कोई अपना खास अलविदा बोल देता है......"
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