"अपनी डायरी के वो पुराने पन्ने पलटते पलटते आज फिर ये आँखें रो पड़ी
ऐसा लग रहा था के वो मेरे पास ही बैठे थे
और मेरे रोने का मज़ा लूट रहे थे ।
किसी की परछाई दिखी, मानो के जैसे एक हाथ उठा हो चुप कराने के लिए
आधी रात को वो आवाज़ मेरे कानो को चीरती हुई बोल रही थी
मत रो, यहीं तेरे पास हूँ मै।
मगर वो भी धोखा ही था - नज़रों का, खयालों को, मेरी उम्मीदों का।
वो अपनी ज़िन्दगी की कश्मकश में मशरूफ थे
अपने घर के आँगन में शाम को चाय का मज़ा लूट रहे थे।
ज़हन ने सवाल किया के वो हाथ किसका था, वो आवाज़ किसकी थी
कहीं फिर किसी ने कोई शरारत तो नहीं की थी??
- Pushkin Channan
ऐसा लग रहा था के वो मेरे पास ही बैठे थे
और मेरे रोने का मज़ा लूट रहे थे ।
किसी की परछाई दिखी, मानो के जैसे एक हाथ उठा हो चुप कराने के लिए
आधी रात को वो आवाज़ मेरे कानो को चीरती हुई बोल रही थी
मत रो, यहीं तेरे पास हूँ मै।
मगर वो भी धोखा ही था - नज़रों का, खयालों को, मेरी उम्मीदों का।
वो अपनी ज़िन्दगी की कश्मकश में मशरूफ थे
अपने घर के आँगन में शाम को चाय का मज़ा लूट रहे थे।
ज़हन ने सवाल किया के वो हाथ किसका था, वो आवाज़ किसकी थी
कहीं फिर किसी ने कोई शरारत तो नहीं की थी??
- Pushkin Channan
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