रोज़ की भागादौड़ी चल रही थी। दफ्तर में हर रोज़ की तरह आज फिर एक रेस लगी थी। ये वो रेस थी जिसकी 3 इडियट्स में बात हुआ करती थी। पता चल रहा था के फिल्में कभी कभी ज़िन्दगी की हक़ीक़त भी बयाँ कर जाती हैं। खैर मुद्दे की बात पर आता हूँ। तो बस सुबह सुबह यूँ ही हर रोज़ की तरह काम किया जा रहा था, तभी एक दोस्त का फोन आता है और नंबर देख कर मैं हैरान रहे जाता हूँ। ये वो आवाज़ थी जिसे सुनने के लिए तरस सा गया था मैं। क्योंकि दूरभाष पर तो सिर्फ आवाज़ आती थी लेकिन वो छेड़ने का मज़ा नहीं आता था। तो बस ऐसी ही एक शाम का इंतज़ार था, 19अप्रैल, 2016 की शाम, हाहा। मेरा एक भाई भी मेरे इंतज़ार में बैठा था। मन में कुछ अजीब सा एहसास हो रहा थी। बहुत ही अच्छा लग रहा था, दोनों से एक अरसे बाद जो मिलने जा रहा था। बस अब पहुँचने के बाद का मैं क्या लिखूं क्योंकि कुछ पलों की अहमियत कोरे पन्नों पर नहीं उतारी जा सकती।
खैर जब अलविदा कहने का समय आया तो मानो के आँखें भर सी आईं मेरी। जाने नहीं देना मैं उस पल को देना चाहता था। पर बड़े भी सही कह गए हैं के जाने वाले को कोई रोक सका है भला??? ☺☺
खैर जब अलविदा कहने का समय आया तो मानो के आँखें भर सी आईं मेरी। जाने नहीं देना मैं उस पल को देना चाहता था। पर बड़े भी सही कह गए हैं के जाने वाले को कोई रोक सका है भला??? ☺☺
nice one
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