ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर,
या वो जगह बता दे जहाँ पर खुदा ना हो।
मिर्ज़ा ग़ालिब
मस्जिद खुदा का घर है, पीने की जगह नहीं,
काफिर के दिल में जा वहां खुदा नहीं।
अल्लामा इक़बाल
काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर,
खुदा मौजूद है वहां मगर उससे पता नहीं।
अहमद फ़राज़
शबाब भरी महफ़िल में मुझे शराब पीने दे, ऐ ग़ालिब!!
जगह चाहे जो भी हो, ये मौके हर रोज़ नहीं आया करते।
पुश्किन चन्नन
या वो जगह बता दे जहाँ पर खुदा ना हो।
मिर्ज़ा ग़ालिब
मस्जिद खुदा का घर है, पीने की जगह नहीं,
काफिर के दिल में जा वहां खुदा नहीं।
अल्लामा इक़बाल
काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर,
खुदा मौजूद है वहां मगर उससे पता नहीं।
अहमद फ़राज़
शबाब भरी महफ़िल में मुझे शराब पीने दे, ऐ ग़ालिब!!
जगह चाहे जो भी हो, ये मौके हर रोज़ नहीं आया करते।
पुश्किन चन्नन
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