..जो लहरों से आगे नज़र देख पाती,
तो तुम जान लेते के मैं क्या सोच रहा हूँ...
वो आवाज़ जो तुमको भी भेद जाती,
तो तुम जान लेते के मैं क्या सोचता हूँ...
ज़िद का तुम्हारे जो पर्दा सरकता,
खिड़कियों से आगे भी तुम देख पाते...
आँखों से आदतों की जो पलके हटाते,
तो तुम जन लेते के मैं क्या सोचता हूँ..
-उड़ान
तो तुम जान लेते के मैं क्या सोच रहा हूँ...
वो आवाज़ जो तुमको भी भेद जाती,
तो तुम जान लेते के मैं क्या सोचता हूँ...
ज़िद का तुम्हारे जो पर्दा सरकता,
खिड़कियों से आगे भी तुम देख पाते...
आँखों से आदतों की जो पलके हटाते,
तो तुम जन लेते के मैं क्या सोचता हूँ..
-उड़ान
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