कुछ एक शाम बस यूँ ही मैं अपने बगीचे में बैठ हुआ था। गर्मियों की वो हसीन शाम थी। पँखा लगा हुआ था और घर वालों के साथ बैठ कर कुछ गुफ़्तगु की जा रही थी। आस पड़ोस में बच्चों के खेलने की वो आवाज़ कानो को ऐसे भा रही थी मानो कोई पश्चिमी संगीत बजा रहा हो। वो पल कुछ इतना सुन्हेरा लग रहा था जैसे मानो सदियो में एक बार आया हो। जब परिवार के सभी सदस्य साथ बैठे हों और बातें कर रहे हों। मन कर रहा था जैसे घडी की सभी सूई रोक दूँ और जी लूँ वो पल। अहसास परिवार का, माँ-बाप के त्याग का तब हुआ जब अपनी रोज़ी कमाने हम खुद घर से बहार निकले थे। मालूम होता है के २ पैसे कमाने में भी कितनी मशक्क़त करनी पड़ती है!! हे प्रभु धन्य हो तुम जो तुमने ऐसे घर नें मुझे जनम दिया है...
-Pushkin Channan
-Pushkin Channan
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