कैसे करें हम खुद को तेरे प्यार के काबिल,
जब हम आदतें बदलतें हैं, तुम शर्तें बदल देते हो।
शुकर करो जो दर्द सहते हैं, लिखते नहीं
वरना वो भी हमारी तरह कागज़ के पन्नों पर शब्दों का जनाज़ा निकाल देते।
औकात नहीं थी ज़माने की, जो मेरी कीमत लगा सके,
कम्भकत इश्क़ में क्या गिरे, मुफ़्त में नीलाम हो गए।
जब हम आदतें बदलतें हैं, तुम शर्तें बदल देते हो।
शुकर करो जो दर्द सहते हैं, लिखते नहीं
वरना वो भी हमारी तरह कागज़ के पन्नों पर शब्दों का जनाज़ा निकाल देते।
औकात नहीं थी ज़माने की, जो मेरी कीमत लगा सके,
कम्भकत इश्क़ में क्या गिरे, मुफ़्त में नीलाम हो गए।
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