समुद्र के किनारे बैठा मैं यूँ ही गुनगुना रहा था,
तभी किसी ने चीख कर कहा के हमें नींद नहीं आई!!!
उनकी गैर मौजूदगी हमें ऐसे चुभने लगी
मानो जैसे गुलाब का फ़ूल बिना काँटों के बगीचे में खिल रहा हो।
यूँ ही बैठे बैठे एक दिन मैंने हवा में तीर चला दिया
मालूम नहीं था के उसका निशाना मेरे अपनों की तरफ था।
बाल उलझे तो ज़ंजीर बन गई
बिजली चमकी तोह शमशीर बन गई
हमने तो यूँ ही फेरी थी रेत पर उंगलियां
ना जाने कहाँ से आपकी तस्वीर बन गई??
तभी किसी ने चीख कर कहा के हमें नींद नहीं आई!!!
उनकी गैर मौजूदगी हमें ऐसे चुभने लगी
मानो जैसे गुलाब का फ़ूल बिना काँटों के बगीचे में खिल रहा हो।
यूँ ही बैठे बैठे एक दिन मैंने हवा में तीर चला दिया
मालूम नहीं था के उसका निशाना मेरे अपनों की तरफ था।
बाल उलझे तो ज़ंजीर बन गई
बिजली चमकी तोह शमशीर बन गई
हमने तो यूँ ही फेरी थी रेत पर उंगलियां
ना जाने कहाँ से आपकी तस्वीर बन गई??
Comments
Post a Comment