आज फिर एक बार मैं उसी जगह आया, लेकिन इस बार अकेले आया।
ऐ दोस्त माफ़ कर देना आज की गिला को, मालूम नहीं था के हम कुछ कुछ ज़्यादा ही तेज़ चल रहे थे।
अश्क आज ऐसे बहे आँखों से जैसे मानो के सदियों से निकलने की आस में बैठे थे ये...
यूँ तो मैं माफ़ी के भी लायक नहीं, लेकिन फिर भी - माफ़ कर दियो ऐ दोस्त मुझे, मेरे इस नादान पन से तुझे ना जाने कितने दुःख झेलने पड़े....
ऐ दोस्त माफ़ कर देना आज की गिला को, मालूम नहीं था के हम कुछ कुछ ज़्यादा ही तेज़ चल रहे थे।
अश्क आज ऐसे बहे आँखों से जैसे मानो के सदियों से निकलने की आस में बैठे थे ये...
यूँ तो मैं माफ़ी के भी लायक नहीं, लेकिन फिर भी - माफ़ कर दियो ऐ दोस्त मुझे, मेरे इस नादान पन से तुझे ना जाने कितने दुःख झेलने पड़े....
Comments
Post a Comment