1. कुर्सी है कोई जनाज़ा तो नहीं ,
कुछ कर नहींसकते तो उतर क्यों नहीं जाते ।
2. रातों को यूँ ही चलती रही मोबाइल पर उंगलियां,
सीने पर किताब रख कर सोये काफी वक़्त हो गया ।
3 न जाने कब खर्च हो गए वो लम्हे, जो छुपा कर रखे थे जीने के लिये।
4. सोचता हूँ धोखे से ज़ेहर दे दूँ सभी खाव्हिशों को दावत पर बुलाकर ।
5. सुकून मिलता है २ लफ्ज़ कागज़ पर उत्तर कर,
चीख भी लेता हूँ और आवाज़ भी नहीं होती।
6. दाग दमन के हों, दिल के हों या चहरे के फ़राज़,
कुछ निशान वक़्त की रफ़्तार क साथ लग ही जाते हैं।
7. मैं वो दरिया हूँ के हर बूँद भंवर है जिसकी,
अच्छा ही किया के किनारा कर लिया हम से ।
कुछ कर नहींसकते तो उतर क्यों नहीं जाते ।
2. रातों को यूँ ही चलती रही मोबाइल पर उंगलियां,
सीने पर किताब रख कर सोये काफी वक़्त हो गया ।
3 न जाने कब खर्च हो गए वो लम्हे, जो छुपा कर रखे थे जीने के लिये।
4. सोचता हूँ धोखे से ज़ेहर दे दूँ सभी खाव्हिशों को दावत पर बुलाकर ।
5. सुकून मिलता है २ लफ्ज़ कागज़ पर उत्तर कर,
चीख भी लेता हूँ और आवाज़ भी नहीं होती।
6. दाग दमन के हों, दिल के हों या चहरे के फ़राज़,
कुछ निशान वक़्त की रफ़्तार क साथ लग ही जाते हैं।
7. मैं वो दरिया हूँ के हर बूँद भंवर है जिसकी,
अच्छा ही किया के किनारा कर लिया हम से ।
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