खुदा से मुझे कोई गिला नहीं है,
किस्मत में मेरी कोई सिला नहीं है।
दोस्ती तोड़ रहे हो गुरूर-ओ-केहर के साथ,
के मेरा शबाब भी लौटा देना मेरे मेहेर के साथ।
ऐ ग़ालिब आ ज़रा हवा का रुख फिर से मोड़ते हैं,
आग लगी है मैखाने में, ज़ालिमों को फिर से मज़ा चाखते हैं।
किस्मत में मेरी कोई सिला नहीं है।
दोस्ती तोड़ रहे हो गुरूर-ओ-केहर के साथ,
के मेरा शबाब भी लौटा देना मेरे मेहेर के साथ।
ऐ ग़ालिब आ ज़रा हवा का रुख फिर से मोड़ते हैं,
आग लगी है मैखाने में, ज़ालिमों को फिर से मज़ा चाखते हैं।
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