हमने हमेशा की तरह आज फिर गिला किया,
उनसे।
आवाज़ में उनकी भी माफीनामा सा था,
रोज़ की तरह।
ऐसा लगा के माफ़ी मांग रहे थे आज वो,
एहसास हुआ के हमने भी कुछ ज़्यादा ही मांग लिया।
याद नहीं रहा था के उम्मीद करने पर हमेशा ठेस पहुंचती है।
आखिर हर किसी की अपनी निजी ज़िन्दगी होती है।
मशरूफ हमेशा की तरह आज भी थे वो, लेकिन अच्छा लगा
के नाचीज़ को याद किया उन्होंने आज।
ऐसा महसूस हुआ के हमसे ज़्यादा परेशान वो थे,
बोले उलझा कर रख दिया है ज़िन्दगी की कश्म-ओ-कश ने।
हमने भी कहा के फ़िक्र क्यों करते हो जनाब, कामयाबी भी आप ही को मिलेगी,
बोले के मज़े ना लो।
हमने कहा के, "हिम्मत से सच बोलो तोह बुरा मानते हैं लोग, रो रो कर कहने की अब आदत नहीं रही...."
उनसे।
आवाज़ में उनकी भी माफीनामा सा था,
रोज़ की तरह।
ऐसा लगा के माफ़ी मांग रहे थे आज वो,
एहसास हुआ के हमने भी कुछ ज़्यादा ही मांग लिया।
याद नहीं रहा था के उम्मीद करने पर हमेशा ठेस पहुंचती है।
आखिर हर किसी की अपनी निजी ज़िन्दगी होती है।
मशरूफ हमेशा की तरह आज भी थे वो, लेकिन अच्छा लगा
के नाचीज़ को याद किया उन्होंने आज।
ऐसा महसूस हुआ के हमसे ज़्यादा परेशान वो थे,
बोले उलझा कर रख दिया है ज़िन्दगी की कश्म-ओ-कश ने।
हमने भी कहा के फ़िक्र क्यों करते हो जनाब, कामयाबी भी आप ही को मिलेगी,
बोले के मज़े ना लो।
हमने कहा के, "हिम्मत से सच बोलो तोह बुरा मानते हैं लोग, रो रो कर कहने की अब आदत नहीं रही...."
Loved it :)
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