अपनी गली में ना कर मुझ को दफ़्न बाद-ऐ-क़त्ल
मेरे पते से क्यों ख़ल्क़ को तेरा घर मिले।
अर्ज़-ऐ-नियाज़-ऐ-इश्क़ के काबिल नहीं रहा,
जिस दिल पर नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा।
कुछ पल हम दूर क्या चले गए मानो जैसे किनारा सा कर लिया हो हमसे और पूछने पर बोलते हैं के जनाब क्या हम पहले कभी मिलें हैं??
Pushkin Channan
है हमें उनसे वफ़ा की उम्मीद जो ये भी नहीं जानते के वफ़ा क्या है?
रंगो में दौड़ते फिरने के हम काइल नहीं,
जब आँख से ही ना टपका तो फिर वो लहू ही क्या??
मेरे पते से क्यों ख़ल्क़ को तेरा घर मिले।
अर्ज़-ऐ-नियाज़-ऐ-इश्क़ के काबिल नहीं रहा,
जिस दिल पर नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा।
कुछ पल हम दूर क्या चले गए मानो जैसे किनारा सा कर लिया हो हमसे और पूछने पर बोलते हैं के जनाब क्या हम पहले कभी मिलें हैं??
Pushkin Channan
है हमें उनसे वफ़ा की उम्मीद जो ये भी नहीं जानते के वफ़ा क्या है?
रंगो में दौड़ते फिरने के हम काइल नहीं,
जब आँख से ही ना टपका तो फिर वो लहू ही क्या??
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