आज फिर एक बार ज़ख्मो को हरा किया गया,
दबाये बैठे थे जिन्हे ख़ुशी क चादर तले,
उन्हें फिर उभरने का मौका मिल गया।
ये ज़माना भी बड़ा खुदगर्ज़ हो गया,
पराये तो पराये अपने ख़ास को भी दूर कर गया।
सोचा था ज़माने क साथ हम भी दौड़ लेंगे,
मगर ये ज़माना इतना नासूर हो जाएगा कभी सोचा न था।
इस ज़माने में मैं तो एक मज़ाक बन कर रह गया,
हंसी का पुतला बन कर रह गया।
जब कभी लगा क मौका है अब आगे निकलने का,
दुनिया ने मुझे अपनी ओर खींच लिया।
गिर पड़े थे जब चोट खाकर,
समुद्र की तरह लहू बह गया।
गैरों से क्या उम्मीद करते,
हमेशा की तरह अपनों का ही हाथ आगे बढ़ा।
हालात सीख तोह कई दे गए,
लेकिन अपने अपने और पराये पराये होते हैं इसका एहसास करा गए।
दबाये बैठे थे जिन्हे ख़ुशी क चादर तले,
उन्हें फिर उभरने का मौका मिल गया।
ये ज़माना भी बड़ा खुदगर्ज़ हो गया,
पराये तो पराये अपने ख़ास को भी दूर कर गया।
सोचा था ज़माने क साथ हम भी दौड़ लेंगे,
मगर ये ज़माना इतना नासूर हो जाएगा कभी सोचा न था।
इस ज़माने में मैं तो एक मज़ाक बन कर रह गया,
हंसी का पुतला बन कर रह गया।
जब कभी लगा क मौका है अब आगे निकलने का,
दुनिया ने मुझे अपनी ओर खींच लिया।
गिर पड़े थे जब चोट खाकर,
समुद्र की तरह लहू बह गया।
गैरों से क्या उम्मीद करते,
हमेशा की तरह अपनों का ही हाथ आगे बढ़ा।
हालात सीख तोह कई दे गए,
लेकिन अपने अपने और पराये पराये होते हैं इसका एहसास करा गए।
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