बैर है मुझे ऊपर वाले से, कैसे बयान करूँ मैं, गिला है जो इस दिल का उस तक कैसे पहुँचाऊँ मैं??
सुना है वक़्त के आगे किसी की नहीं चलती, पर वक़्त ऐसी पलटी मारेगा ऐसा भी कभी सोचा नहीं था।
वक़्त की आग में पत्थर भी पिघल कर बिखर जाते हैं, पर यहाँ तो वक़्त ने इंसान को ही अपने तराजू में तोल दिया है।
ख़ुशी मांगी थी, यहाँ तो दुःख का भरमार मिला, गम भी ऐसा जिसका कोई इलाज नहीं मिला।
क्योंकि अंदर की ख़ुशी मैं कहीं गवा चुका था,
असल ख़ुशी क्या होती है मुझे पता नहीं,
मानो के जैसे सदियों पहले मिली थी ये।
हर सुबह एक नए सूरज के साथ उम्मीद सी जागती है,
ढलते सूरज के साथ हर रोज़ की तरह जैसे खो जाती है ये।
इसी बीच राह में अकेला चल रहा था मैं,
ख़ुशी को खोजने में अपनी मदद सी कर रहा था मैं।
ख़ुशी तो मिली नहीं, लेकिन गम बहुत मिले,
दरस्त-ऐ-गम की ज़िन्दगी में जैसे डूब सा गया था मैं।
सोचा के किसे बयां करूँ अपना दर्द-इ-दिल??
तभी एक दोस्त ने आके हाथ थामा,
बोला के मेरे होते हुए चिंता नहीं करना।
कभी भी परेशानी हुई तो मुझे याद कर लेना,
"मैं हूँ ना" सा फिल्मी डायलाग उसने मारा,
थोड़ा हंसा लेकिन फिर शांत हो गया ये दिल बेचारा।
वो दोस्त कुछ ख़ास बन कर दिल में बस गया।
उसके साथ जीने का जैसे नशा सा हो गया।
बड़े दिनों बाद लगा के कुछ अच्छा हो रहा था,
हाथ से जाने नहीं मौके को देना चाहता था।
ज़िन्दगी में मशरूफ थे वो अपनी, समय नहीं होता था।
फिर भी मैं एक उम्मीद की किरण लगाए रखता था,
एक आशा सी लगाए रखता था।
पूरी वो आशा सदियों में एक बार ही होती थी,
इससे दिल को ठेस भी बहुत पहुंचती थी।
ऐसा लगने लगा था के गम और मेरा एक रिश्ता सा हो गया है,
मेरा पीछा ये कभी भी नहीं छोड़ता है।
"ना वो मिलती है (ख़ुशी), न मैं रुकता हूँ
पता नहीं रास्ता गलत है या मज़िल" बोलने को मजबूर कर दिया है।
Pushkin Channan
सुना है वक़्त के आगे किसी की नहीं चलती, पर वक़्त ऐसी पलटी मारेगा ऐसा भी कभी सोचा नहीं था।
वक़्त की आग में पत्थर भी पिघल कर बिखर जाते हैं, पर यहाँ तो वक़्त ने इंसान को ही अपने तराजू में तोल दिया है।
ख़ुशी मांगी थी, यहाँ तो दुःख का भरमार मिला, गम भी ऐसा जिसका कोई इलाज नहीं मिला।
क्योंकि अंदर की ख़ुशी मैं कहीं गवा चुका था,
असल ख़ुशी क्या होती है मुझे पता नहीं,
मानो के जैसे सदियों पहले मिली थी ये।
हर सुबह एक नए सूरज के साथ उम्मीद सी जागती है,
ढलते सूरज के साथ हर रोज़ की तरह जैसे खो जाती है ये।
इसी बीच राह में अकेला चल रहा था मैं,
ख़ुशी को खोजने में अपनी मदद सी कर रहा था मैं।
ख़ुशी तो मिली नहीं, लेकिन गम बहुत मिले,
दरस्त-ऐ-गम की ज़िन्दगी में जैसे डूब सा गया था मैं।
सोचा के किसे बयां करूँ अपना दर्द-इ-दिल??
तभी एक दोस्त ने आके हाथ थामा,
बोला के मेरे होते हुए चिंता नहीं करना।
कभी भी परेशानी हुई तो मुझे याद कर लेना,
"मैं हूँ ना" सा फिल्मी डायलाग उसने मारा,
थोड़ा हंसा लेकिन फिर शांत हो गया ये दिल बेचारा।
वो दोस्त कुछ ख़ास बन कर दिल में बस गया।
उसके साथ जीने का जैसे नशा सा हो गया।
बड़े दिनों बाद लगा के कुछ अच्छा हो रहा था,
हाथ से जाने नहीं मौके को देना चाहता था।
ज़िन्दगी में मशरूफ थे वो अपनी, समय नहीं होता था।
फिर भी मैं एक उम्मीद की किरण लगाए रखता था,
एक आशा सी लगाए रखता था।
पूरी वो आशा सदियों में एक बार ही होती थी,
इससे दिल को ठेस भी बहुत पहुंचती थी।
ऐसा लगने लगा था के गम और मेरा एक रिश्ता सा हो गया है,
मेरा पीछा ये कभी भी नहीं छोड़ता है।
"ना वो मिलती है (ख़ुशी), न मैं रुकता हूँ
पता नहीं रास्ता गलत है या मज़िल" बोलने को मजबूर कर दिया है।
Pushkin Channan
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