तजुर्बा है मेरा, मिट्टी की पकड़ मज़बूत होती है,
संगमरमर पर तो मैंने अक्सर पैर फिसलते देखे हैं।
कितना खौफनाक होता है रात का अँधेरा,
ज़रा पूछ उन परिंदो से जिनके घर नहीं होते।
कौन कहता है के पानी से आग बुझा करती है।
अगर ऐसा होता तो ,
आखों से निकले हुए अश्क ज़रूर हमारी दिल की आग की बुझा देते।
हर शब्द का कोई अर्थ होता है,
हर अर्थ का कोई तर्क होता है।
दुनिया कहती है के हम हस्ते बहुत हैं,
मगर हसने वाले के दिल में भी दर्द होता है।
संगमरमर पर तो मैंने अक्सर पैर फिसलते देखे हैं।
कितना खौफनाक होता है रात का अँधेरा,
ज़रा पूछ उन परिंदो से जिनके घर नहीं होते।
कौन कहता है के पानी से आग बुझा करती है।
अगर ऐसा होता तो ,
आखों से निकले हुए अश्क ज़रूर हमारी दिल की आग की बुझा देते।
हर शब्द का कोई अर्थ होता है,
हर अर्थ का कोई तर्क होता है।
दुनिया कहती है के हम हस्ते बहुत हैं,
मगर हसने वाले के दिल में भी दर्द होता है।
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